SUMMARY OF INDIVIDUAL AND MASSES
Summary in English ;
This essay individual and masses by Aldous huxley has been extracted from Brave New World revisited published in 1958. In this essay, he has explained the mutual relation between an individual and the crowd and their psychology. In the very beginning he has remarked that the contact of an individual with his society is established in two ways-Either as a member of family, a profession or a religious group or as a part of crowd. The group membership is always useful because it consists of moral and intelligent persons. But as a part of crowd, he is different because the crowd is chaotic. It has no aim and it neither acts properly nor thinks in a realistic way. They do not have any power of the reasoning, have no judgement and so they are easily led by the suggestions from others. Man in crowd as if he is intoxicated and so it is better to say that he is the victim of herd poisoning. They are frantic and mindless. Moreover, reading is a private activity and the writer speaks only to certain individuals while an orator is speaks to the masses and he can do with them what he likes.
The individual is different from the masses. He is rational and is interested in fact only. He is not easily influenced by any propaganda, demands evidence and is always away from the fallacies and ecological things. He has no charm for slogans and does not make thoughtless statements. Quite different from all this, philosophy teaches us to be uncertain even though they are self-evidence. Propaganda teach us to believe everything, even those which could be suspended for sometime. In propaganda there is no middle way but either this or that. They are not prepared to accept people with different view and you think that they are always right. They believe that the opponents should be attacked or shouted down and if they create greater difficulty, they should be put to an end. He tells that really virtuous and intelligent people mix with other in small groups. The propagandist compels others to act in a particular way. This is not the characteristic of individuals but of the masses. Mindless are not human qualities. All the religions offer salvation and enlightenment to serious individuals. The Kingdom of heaven is within the mind of a person and we have to preserve in integrity and establish the value of human individuals and this work should be done as early as possible.
Summary in Hindi ;
एल्डोस हक्सले का यह निबंध Individuals and Masses के लेख New World Revisited से लिया गया है जो 1958 में प्रकाशित हुआ था। इस निबंध में, उसने भीड़ तथा व्यक्ति के मध्य आपसी संबंधों का वर्णन किया है तथा उनका मनोविज्ञान प्रस्तुत किया है। बिल्कुल आरंभ में उसने बताया है कि अपने समाज के साथ व्यक्ति का संबंध दो प्रकार से स्थापित होता है या तो परिवार अथवा धार्मिक समूह के सदस्य के रूप में अथवा भीड़ के अंग के रूप में। समूह की सदस्यता सदैव लाभदायक होती है क्योंकि इसमें नैतिक तथा बुद्धिमान लोग सम्मिलित होते हैं परंतु भीड़ के अंग के रूप में, वह भिन्न होता है क्योंकि भीड़ अव्यवस्थित होती है। उसका कोई उद्देश्य नहीं होता और यह न तो उचित कार्य करती है और न ही वास्तविकता में सोचती है। उनमें कोई तर्कशक्ति अथवा निर्णय सकती नहीं होती अतः वह दूसरों के सुझाव द्वारा आसानी से उधर उधर ले जाए जा सकते हैं। भीड़ में मनुष्य ऐसा व्यवहार करता है जैसे वे नशे में हो। अतः यह कहना अधिक अच्छा है कि वह भीड़ के विष का शिकार है। यह पागलों के समान बुद्धिहीन होते हैं। इसके अतिरिक्त पढ़ना एक व्यक्तिगत क्रिया है और लेखक केवल कुछ निश्चित लोगों से बात करता है जबकि वक्ता केवल भीड़ से ही बात करता है और उनके साथ जो चाहे वही कर सकता है।
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व्यक्ति भीड़ से भिन्न होता है। वह तार्किक एवं केवल तथ्यों में रुचिपूर्ण होता है। वह प्रचार से आसानी से प्रभावित नहीं होता, प्रमाण मांगता है और सदैव तर्कहीन चीजों तथा झूठे विश्वासों से दूर रहता है। उसमें नारों के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता और वह कोई भी विचारहीन कथन नहीं करता। इन सबसे बिल्कुल भिन्न, दर्शनशास्त्र हमें अनिश्चितता सिखाता है चाहे कोई भी चीज स्वयं सिद्ध ही हो। प्रचार हमें प्रत्येक चीज में विश्वास करना सिखाता है, उसमें भी जिन्हें कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। प्रचार में, कोई भी मध्यम मार्ग नहीं होता बल्कि सब इधर अथवा उधर का होता है। वे भिन्न विचार वाले लोगों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते और समझते हैं कि वह सदा सही होते हैं। वे यह विश्वास करते हैं कि विरोधियों पर आक्रमण किया जाए अथवा शोर मचा कर चुप कर दें और यदि वे अधिक कठिनाई उत्पन्न करे तो उनका अंत कर दिया जाए। वह बताता है कि वास्तव में गुणवान एवं बुद्धिमान लोग दूसरों से छोटे समूह में ही मिलते हैं। प्रचारक दूसरों को एक विशेष प्रकार से कार्य करने के लिए मजबूर करता है। यह व्यक्तियों का गुण नहीं बल्कि भीड़ का गुण होता है। मस्तिष्कहीनता मानव गुण नहीं है। सभी धर्म गंभीर व्यक्तियों के लिए ही मुक्ति एवं आत्मबोध प्रदान करते हैं। स्वर्ग का साम्राज्य मनुष्य के मस्तिष्क में ही होता है तथा हमें सत्यनिष्ठा की रक्षा करनी है तथा व्यक्ति के मूल्य स्थापित करने हैं और यह कार्य जितनी जल्दी संभव हो, किया जाना चाहिए।
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