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Translation passages Hindi to English


          Translation passages Hindi to English


 दोस्तों, आज के युग में सभी से यह आशा की जाती है कि वह शुद्ध अंग्रेजी बोले, पढ़ें, और लिखें। इसके लिए Translate  बनाने आना बहुत ज्यादा जरूरी है।  हिंदी Translate Hindi to English बनाने के लिए सबसे पहले Vocabulary ज्ञान होना चाहिए। तथा Idioms and phrases तथा Grammar का भी अच्छे तरीके से ज्ञान होना चाहिए Meaning और Spelling अच्छी तरह से प्रयोग करने आने चाहिए। Punctuation तथा capital letters का प्रयोग करने आना चाहिए।


         How to learn translation Hindi to English

  1. वाक्यों के tense पर ध्यान दीजिए। जिस tense में वाक्य हो उस tense की मुख्य मुख्य बातों पर ध्यान रखते हुए translation कीजिए।

2 यदि sentence present indefinite tense  में हो तो do, does, do not, does not  के प्रयोग का ध्यान रखिए।

3 यदि sentence past indefinite tense positive sentence है तो प्रत्येक करता  subject के साथ Verb की  second form  लिखिए।

4 यदि past indefinite tense का negative sentence हो तो प्रत्येक subject के साथ did not का प्रयोग करके verb की first form लिखिए।

5 यदि past indefinite tense का interrogative sentence हो तो प्रत्येक  subject के साथ did का प्रयोग कीजिए।

Note  did के साथ verb की first form आएगी।

6 यदि sentence present perfect tense में हो तो have/ has के साथ verb की third form आएगी।

7 present perfect continuous tense में have been or has been के साथ verb की first form में ing बढ़ाकर for या since लिखिए।

8 past perfect continuous tense में प्रत्येक subject के साथ had been का प्रयोग होता है tense के शेष नियम present perfect continuous tense  वाले होते हैं।

9 यदि वाक्य complex है तो adjective class, adverb clause तथा noun clause का प्रयोग पर ध्यान दीजिए।

10 active passive, direct indirect, तथा sequence of tense के नियमों में ध्यान रखिए।


Hindi to English translation practice passage

                             Story Translation HINDI TO ENGLISH         

                   Exercise 1        

बगदाद में एक फकीर रहता था। वह अपना अधिकतर समय प्रार्थना तथा पूजा में व्यतीत करता था। बहुत से लोग उस फकीर के दर्शन के लिए आने लगे और प्रतिदिन उसकी कुटिया के सामने लोगों की भीड़ लगी रहती। फकीर को यह अच्छा नहीं लगा क्योंकि भीड़ से उसकी पूजा में विघ्न पढ़ने लगा। भीड़ उसे ईश्वर की पूजा तथा प्रार्थना भी नहीं करने देती थी। अंत में फकीर ने इस कठिनाई से मुक्त होने का तरकीब निकाली ली। वह प्रतिदिन धनी दर्शकों से धन मांगने लगा और उस धन को भीड़ में गरीबों को उधार देने लगा। कुछ दिनों बाद धनी दर्शकों तथा गरीब लोगों ने उसके पास आना बंद कर दिया। धनी लोग उसे धन देना नहीं चाहते थे और गरीब लोग उसके धन को वापस नहीं करना चाहते थे। अब फकीर बिना किसी विघ्न के ईश्वर की पूजा करने लगा।

                       Exercise 2

एक व्यापारी के पास एक नौकर था जिसने बहुत दिनों तक उसकी सेवा की। सदैव वह सबसे पहले उठा करता था और रात में सबके पश्चात सोया करता था। दूसरी अच्छी बात उसके विषय में यह थी, कि वह कभी बड़बड़ाया नहीं करता था और सदैव प्रसन्न और शांतिपूर्वक रह करता था। जब उसकी नौकरी का प्रथम वर्ष बीत गया, तो उसके मालिक ने निश्चय किया कि उसका वेतन न दे, कहीं ऐसा न हो कि वह नौकरी छोड़कर चला जाए। जब नौकर ने मालिक से अपना वेतन मांगा, मालिक ने उससे कहा, "तुम रुपया लेना क्यों चाहते हो? मैं तुम्हारे वेतन को पोस्ट ऑफिस में तुम्हारे खाते में जमा कर दूंगा।" इस पर नौकर ने कुछ भी नहीं कहा और सदैव की भाँति अपना कार्य करता है रहा।

                  Exercise 3

गांधीजी प्रथम बार भारत में 1922 में जेल गए। वे यरवदा जेल में रखे गए थे। जेल अधीक्षक को ज्ञात था कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही गांधी जी से प्रेम करते हैं। उसे डर था कि यदि उसने गांधीजी को ऐसा सेवक दिया जो अंग्रेजी या भारतीय भाषा बोल सके, तो ब्रिटिश साम्राज्य के लिए यह अच्छा ना होगा। उसका विचार था कि गांधीजी ऐसे सेवक को साम्राज्य का शत्रु बना लेंगे। अतः उसने गांधीजी के लिए एक नीग्रो कैदी को चुना। गांधीजी संकेतों से अपने भाव प्रकट करते थे। अतः जेल अधिकारी पूर्ण रूप से सुरक्षा का अनुभव करता था। हब्शी के बिगड़ जाने का कोई भय न था। किंतु हप्सी को गांधीजी से ऐसा प्रेम मिला कि वह गांधी जी का मित्र बन गया। वह गांधी जी की सेवा प्रेम और उत्साह से करता था। यह देखकर जेल अधीक्षक निराश हुआ।

                Exercise 4

एक राजा बहुत अच्छा था। वह ईमानदार व्यक्तियों को बहुत चाहता था। एक दिन वह कैदियों को देखने के लिए जेलखाना गया। वहां उसने एक कोठरी में दो कैदी देखें। राजा ने उनसे पूछा, "तुमने कौन सा अपराध किया है? जिसके कारण तुम्हें यहाँ आना पड़ा?" एक कैदी ने कहा, श्रीमान जी, मुझमें और नगर के हाकिम में दुश्मनी थी। इसलिए उसने मुझे जेल भेज दिया।" दूसरे कैदी ने कहा, "श्रीमान जी, मैंने एक घोड़ा चुराया था। इसलिए मुझे दंड मिला है। जैसा मैंने किया वैसा पाया। नगर के हाकिम का कोई दोष नहीं है।" इस पर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, "तुम्हें आज छोड़ दिया जाएगा क्योंकि तुमने सत्य बोला है।"

                  Exercise 5

कन्नौज का राजा बहुत बुद्धिमान था। उसके एक पुत्र था। राजकुमार बहुत छोटा था और राजा बहुत बूढ़ा था। इसलिए राजा अपने पुत्र के लिए एक स्वामीभक्त और ईमानदार मंत्री चाहता था। एक दिन उसने सब दरबारियों को बुलाया। उसने उनसे पूछा, "क्या मैं सबसे अच्छा राजा हूं?" कुछ दरबारियों ने कहा, "श्रीमान आप संसार के सबसे अच्छे राजा हैं।" यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने प्रत्येक दरबारी को एक हीरा दिया। एक दरबारी चुपचाप बैठा हुआ था। राजा ने उससे भी वही प्रश्न किया। उसने कहा, "निसंदेह, आप अच्छे राजा हैं; किंतु संसार में आपसे भी अच्छे राजा हैं।" यह सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने उस दरबारी को अपने पुत्र का संरक्षक बना दिया।

                Exercise 6

आशा के बिना मानव जीवन जीवन असंभव है। यदि आशा ना होती तो मनुष्य जीवन बड़ा बोझिल और दु:खमय हो जाता। विद्यार्थी सालभर कड़ा परिश्रम करते हैं, केवल इसी आशा पर कि वे सफलता का मुख देखेंगे। एक किसान घोर उष्णता और शीत का तनिक भी ध्यान नहीं करता। इसी प्रकार व्यापारी लोग व्यापार में धन लगाते हैं केवल इसी आशा का आश्रय लेकर ताकि उनका व्यापार उनके लिए लाभकारी सिद्ध हो। तभी तो बुद्धिमान तथा महापुरुषों ने आशा को मानव जीवनरूपी जहाज का संबल कहा है।

                Exercise 7

भारत में ऐसा कौन है जो गुरु नानक जी के नाम से परिचित न हो। बुद्ध तथा चैतन्य की भाँति गुरु नानक ने सभी को सत्य, प्रेम, एवं दया का मार्ग दिखाया। नानक गरीब माता-पिता की संतान थे। उनका जन्म लाहौर के पास एक गांव में 1469 ईस्वी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई थी। बाल्यावस्था से ही वह बड़ी सूझ-बूझ वाले थे। शीघ्र ही उन्होंने संस्कृत तथा फारसी में प्रवीणता प्राप्त कर ली। वे इन भाषाओं में काव्य रचना भी करने लगे। बचपन से ही नानक सांसारिक आकर्षणों से दूर रहते थे जिससे उनके माता-पिता को बड़ी चिंता हुई। 32 वर्ष की आयु में नानक सन्यासी हो गए और भारत के अंदर तथा बाहर विभिन्न पवित्र स्थानों का दर्शन करते घूमते रहे।


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